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आखिर क्या वजह है कि सभी शिक्षक आत्मसमर्पण कर दिए हैं।
शिक्षक. की कोई भी बात नहीं कर रहा विद्यालय बंद होने के बजाय शिक्षक लोगों से अविधिक रूप से काम लिया जा रहा है।
यदि इसी Corona guideline का कोई आदमी उल्लंघन कर दे तो तमाम धाराएं लगा दी जाएंगी।
वजह जो भी कोरोना(Corona) महामारी की गाइडलाइन शायद शिक्षक के लिए नही है!

गोरखपुर जनपद के प्राथमिक विद्यालय पीपीगंज प्रथम के सहायक अध्यापक धनुषधारी दूबे का कल कोरोना से निधन हो गया। बेसिक शिक्षा विभाग मे कोरोना गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है,जिससे प्रदेश में कई शिक्षक कोरोना के चपेट मे आये है ।
शिक्षक धनुषधारी दूबे एक कर्मनिष्ठ शिक्षक थे।उनके दोनों बेटे भी कोरोना (Corona) पाजीटिव है।बड़े भाई त्रिपुरारी दूबे भी इस समय कोरोना के संक्रमण के कारण फातिमा हॉस्पिटल में भर्ती हैं।
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जहाँ एक तरफ मुख्यसचिव 20 सितंबर तक विद्यालय बंद करने का आदेश ,दे रखें हैं!
वहीं बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी सरकार के आदेश ताक पर रखकर काम कर रहे हैं।
शिक्षको में शोक की लहर है। ईश्वर से प्रार्थना है कि मृतात्मा को शांति प्रदान कर पूरे परिवार को यथाशीघ्र स्वस्थ करें।
इस पोस्ट से मुखातिब होने वाले सभी शिक्षक बन्धु पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि आम जनमानस शिक्षक परिवार की समस्याओं को समझे!
दिनांक 6 सितंबर 2020 को एक शिक्षिका दुर्घटना का शिकार हुई
एक और शिक्षिका बहन अव्यवस्था की बलि चढ़ी(गोंडा दुर्घटना), भगवान उनकी आत्मा को शांति दे, आप इसे मार्गदुर्घटना कह सकतें है
पर मेरी नजर में ये हत्या है।अगर ये हत्या नही तो फिर सुशांत सिह राजपूत की मौत भी हत्या नही)
गौर करिये तो दिखेगा की ये मजबूर थी लंबी दूरी तय करने को।
केंद्र और राज्य सरकार से स्थानीय स्तर पर DM के अनलॉक 4 में स्पष्ट आदेश है कि 20 सितंबर तक शिक्षक को विद्यालय नही जाना है तो कौन है जिसने इन्हें विद्यालय बुलाया, जांच होनी चाहिए!
खैर ये कोई नई बात नही है हर महीने ऐसे केस आते हैं हम शिक्षक दुःख जताते हैं
और आसमान की तरफ देखते है कि कोई मसीहा आएगा और हमारी मदद करेगा देखते है कब आता है मसीहा क्योकि मसीहा ने खुद कहा है कि मैं उसी की मदद करता हूँ जो अपनी मदद स्वयं करता है।
चलिये शिक्षक तो फिर भी दुःख जता देता है पर विभागीय उच्च अधिकारी शोक तक व्यक्त नहीं करते, जब विभाग के अधिकारी ही शिक्षक के बारे में नही सोचेंगे तो समाज क्यो सोचेगा।
बड़ी विडंबना है जिस विभाग में रोज 10 नए आदेश बनाने का समय तो है पर वर्षों से बन्द पड़ी बीमा योजना शुरू करने का समय नहीं है जबकि सिर्फ नए बीमा प्लान पर सहमति बनानी है,
हर सूचना लेने का तो समय है पर ट्रांसफर की लिस्ट जारी करने का समय नहीं है। ट्रेनिंग के लिए समय तो है पर हेल्थ इंसोरेंस शुरू करने का समय नही है, कई बार तो लगता है कि कोई करना ही नही चाहता न तो शिक्षक न ही अधिकारी।अगर मसीहा का इंतजार करोगे तो एक दिन तुम्हारा नम्बर भी आ जायेगा ये तो पक्का है मसीहा आएगा कि नही ये नही पता
अतः अभी भी समय है मसीहा के इंतजार में मत बैठो शायद मसीहा भी तुम्हारे इंतजार में बैठा है तो उठो और एक दूसरे का सहारा बनों और खुद की सुरक्षा के लिए एकजुट हो जाओ।
ऐसी स्थिति किसी के भी जीवन मे आ सकती है हम उसे बदल तो नही सकते पर ऐसी स्थिति से परिवार पर आने वाले आर्थिक संकट को रोक सकतें है
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